वह चला था चौदह बरस तक
अब उसे तुम चार दिवारी में बंद कर
उसके नाम पे लड़ कर धंधा खोलना चाहते हो
और उसे धर्म बताते हो
जब कर रहे हो उसका १००८ बार गुणगान टीवी के सामने
कोई रामलाल पैदल ही जा रहा है १००८ किलोमीटर अपने परिवार के पास
तुम पूछते हो मैं तो घर में बैठकर क्या कर सकता हूं
मैं कहता हूं खोल दो उसके लिए मंदिर के दरवाज़े
और बिताने दो रामलाल को कुछ रात वहां
मगर तुम फिर तपाक से कहोगे
हमारा मंदिर अपवित्र हो जाएगा
पवित्रता का दोगुलापन कहीं और दिखाना
उस रामलाल ने ही तुम्हारे मन्दिर को ईंट पत्थर जोड़ कर बनाया है